कोरबा :

बीमा कंपनियों को रखना होगा पारदर्शिता 

यूँ तो बीमा करने से पूर्व सभी कंपनी या कंपनी मे कार्य करने वाले लोग बीमा लेने वाले उपभोक्ताओं से बड़े बड़े वादे करते हैँ के उन्हें भविष्य मे एक बड़ी राशि प्राप्त होगी वहीँ यह भी कहा जाता है के यदि किसी बीमा धारक के असामयिक निधन होने पर बीमाधारक के परिवार को मूल जमा की गई राशि के साथ एक बड़ी राशि ब्याज एवं भविष्य निधि के तौर पर दिया जायेगा, पर अब यह एक कहावत की तरह लगने लगा है। वर्तमान मे कोरबा जिले मे ऐसा ही एक मामला सामने आया जहाँ बीमा कंपनी एच.डी.एफ सी लाइफ ने एक बीमाधारक के असामयिक निधन होने पर उनके परिवार द्वारा दावा पेस करने पर बीमाधारक की पुरानी बीमारी से निधन होने का हवाला देकर बीमा दावा को ही निरस्त कर दिया गया । जिसपर परिवार ने मामले को लेकर उपभोक्ता आयोग के समक्ष जाने पर आयोग ने पुरानी बीमारी का आधार बनाकर बीमा कंपनी द्वारा उपभोक्ता का मृत्यु दावा निरस्त करने के मामले में उपभोक्ता के पक्ष में फैसला सुनाया है। आयोग ने बीमा कंपनी को आदेश दिया है कि वह 30 दिनों के भीतर बीमा राशि या बकाया होम लोन की राशि का भुगतान करे। यह आदेश परिवादिनी श्रीमती प्रमिला अटारे द्वारा दायर परिवाद पर सुनाया गया, जिनके पति की मृत्यु के बाद बीमा कंपनी ने दावा को किया था खारिज । मामला यह है के, परिवादिनी श्रीमती प्रमिला अटारे ने अपने पति स्व. पुरनलाल अटारे के लिए एच.डी.एफ.सी बैंक से वर्ष 2019 में 20 लाख रुपये का होम लोन लिया था। जिसपर बैंक ने इस लोन के साथ ही उन्हें एच.डी.एफ.सी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी की क्रेडिट प्रोटेक्ट प्लस पॉलिसी दी थी , जिसके लिए उन्होंने 2,34,064 रुपये का प्रीमियम भी भरा। पर वर्ष 2020 में पुरनलाल अटारे के निधन के बाद, उनकी पत्नी ने बीमा कंपनी में मृत्यु दावा प्रस्तुत किया परन्तु बीमा कंपनी ने उक्त दावा को पुरानी बीमारी की जानकारी पूर्व मे बीमा धारक द्वारा नही दी गई का कारण बताकर दावा को निरस्त कर दिया था।

अधिवक्ता अस्थाना ने निभाया अपना कर्तव्य,दिलाया न्याय 

जिसपर परिवादिनी के दर दर ठोंकर खाने के बाद आखिरकार अधिवक्ता मंजीत अस्थाना के माध्यम से जिला उपभोक्ता आयोग कोरबा के समक्ष परिवाद दायर किया गया । जिसपर आयोग ने मामले की पूर्ण रूप से जांच करने के बाद पाया कि बीमा कंपनी ने अपने दायित्वों का सही ढंग से निर्वहन नहीं किया। आयोग ने तर्क दिया कि बीमा कंपनी को यह पुष्टि करना चाहिए था कि पुरानी बीमारी की जानकारी जानबूझकर यदि छिपाई गई थी, तो क्यों छिपाई गई थी, क्या इसकी जांच की गई थी । जिसपर आयोग ने गंभीरता से विचार के बाद पाया के बिना ठोस प्रमाण के दावा को निरस्त करना अनुचित है। आयोग ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने और दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद बीमा कंपनी द्वारा दावा निरस्त करना अनुचित था जिसपर निर्णय देते हुए बीमा कंपय को आदेश दिया कि वह होम लोन की बकाया राशि 30 दिनों के भीतर परिवादिनी को भुगतान करे । इस फैसले से एक ओर परिवादिनी को जहाँ मिली राहत,तो वहीँ अधिवक्ता मंजीत अस्थाना और अमिताभ श्रीवास्तव द्वारा परिवादिनी की ओर से पैरवी करते हुए यह साबित भी किया गया कि बीमा कंपनी का दावा निरस्त करने का आधार पूर्णतः गलत था। जिसपर लोगों ने अधिवक्ताओं द्वारा उपभोक्ता को उचित न्याय दिलाने पर उनके कार्यों की सराहना की गई।